पशुओं को इन बीमारियों से रखें दूर, जानें लक्षण और इलाज
सुरक्षित पशुपालन के लिए पशुओं को बीमारियों से दूर रखना ज़रूरी है। आइए, पशुओं के खुरपका-मुंहपका और गलाघोंटू रोगों के लक्षण और इलाज़ को जानें।

खेती के साथ पशुपालन आमदनी का एक बेहतर विकल्प है। लेकिन, कभी-कभी पशुओं में होने वाली बीमारियों के चलते पशुपालकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। जानकारी के अभाव में पशुओं की अकाल मृत्यु हो जाती है। इसलिए ज़रूरी है कि पशुपालन सुरक्षित तरीके से किया जाए।
आज हम Knitter के इस ब्लॉग में आपको पशु पालन के इसी पहलू से अवगत कराएंगे। हम बताएंगे कि पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए आपको क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? किस तरह टीकाकरण जैसे उपाय अपनाने चाहिए? आदि। तो चलिए, जानकारियों का ये सफर आगे बढ़ाते हैं।
इस दौरान आप जानेंगे-
- पशुओं में कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं?
- उनके लक्षण क्या है?
- बीमारियों की रोकथाम कैसे की जा सकती है?
- टीकाकरण का तरीका क्या है?
- एक्सपर्ट की सलाह
पशुओं में होने वाली कुछ प्रमुख बीमारियां:
मुंहपका-खुरपका
यह एक विषाणु जनित रोग है, जो मुंह और पैर में होता है। यह रोग मुख्यतः जुगाली करने वाले जानवर जैसे गाय, भैंस, बकरी और भेड़ में पाया जाता है। इस रोग से ग्रसित पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बहुत ही कम हो जाती है। यह रोग बहुत ही तेजी से फैलता है। छोटे पशुओं में इसकी आशंका अधिक होती है।
लक्षण
- 105 से 107 फारेनहाइट तक तेज बुखार
- खुरों के बीच छाले, जिससे पशु का लंगड़ाना
- मुंह, मसूड़े और जीभ पर छाले और लगातार लार का गिरना
- पैर के छालों में जख्म और कीड़े का होना
- दुधारू पशुओं में दूध के उत्पादन में एकदम कमी होना
उपचार
जयपुर स्थित वेटनरी हॉस्पिटल के वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. के.एल. स्वर्णकार बताते हैं कि विषाणु जनित रोगों का सही इलाज़ अभी तक नहीं खोजा जा सका है, अतः बचाव ही उपचार है।
- मुंह और खुर के घावों की रोज़ाना सुबह-शाम फिटकरी या लाल दवा के हल्के घोल से सफाई करें
- घाव में कीड़े होने पर फिनाइल और सरसों का तेल लगाएं
- नीम के पत्ते उबालकर भी घाव की सफाई कर सकते हैं
- पशु चिकित्सक की देखरेख में ही इलाज़ कराएं
रोकथाम और बचाव
- प्रत्येक वर्ष मानसून से पहले एफएमडी (FMD) का टीका लगवा लें
- यह रोग महामारी के रूप में फैलता है, अतः रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखें
- बीमार पशु के खाने-पीने का प्रबंध अलग करें
- पशु को कीचड़ और गंदी जगह पर नहीं बांधे
- रोग की सूचना पशु अस्पताल में दें
गलाघोंटू
यह जीवाणु जनित रोग है, जो मुख्यतः पशु के गले में होता है। इस बीमारी से ग्रसित पशु खाना-पीना बंद कर देता है। यह बीमारी उन स्थानों पर ज़्यादा होती है, जहां बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है।
लक्षण
- 105-106 फारेनहाइट तक तेज बुखार
- आंखें लाल और सूजी हुई
- नाक, आंख और मुंह स्राव
- गर्दन, सिर और आगे की दोनों पैरों के बीच सूजन
- सांस लेने में कठिनाई
उपचार और बचाव
- रोग का तुरंत उपचार आवश्यक है, अन्यथा पशु की मृत्यु हो सकती है
- रोग की सूचना तुरंत पशु अस्पताल में दें
- मानसून से पहले एच.एस (H.S.) का टीका अवश्य लगवा लें
- रोग के लक्षण देखते ही रोगी पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें
लगड़ा बुखार
इस रोग को फड़सूजन रोग भी कहते हैं। यह रोग भी जीवाणुओं से होता है। इस रोग का प्रकोप सबसे ज़्यादा बरसात के बाद होता है। इस रोग से ग्रसित पशु के पुट्ठों में दर्द होता है, जिससे पशु लंगड़ाकर चलते हैं।
लक्षण
- 105-107 फारेनहाइट तक तेज बुखार
- खाना-पीना और जुगाली बंद कर देना
- शरीर के विभिन्न अंगों में अकड़न
- आंखों का लाल होना
- पशु का पहले लंगड़ाना और बाद में चलने-फिरने में पूरी तरह से असमर्थ हो जाना
उपचार और बचाव
- रोगी पशु का तुरंत इलाज़ कराएं
- इस रोग से बचाव के लिए प्रतिवर्ष मानसून से पहले बी.क्यू (B.Q.) का टीका लगवा लें
- दूसरे पशुओं में यह रोग न फैले, मृत पशु को गांव के बाहर 1.5 मीटर गहरे गड्ढे में चूने या नमक के साथ दबा दें
पशुओं के टीकाकरण पर एक नज़र
रोग |
टीके का नाम |
टीकाकरण का समय |
मुंहपका-खुरपका
|
एफएमडी (FMD) |
जुलाई से सितंबर |
गलाघोंटू |
एच.एस (H.S.) |
मई-जुलाई |
लगड़ा बुखार |
बी.क्यू (B.Q.) |
जून-अगस्त |
Note- ये सभी टीके सरकारी अस्पताल में बहुत ही कम दर पर उपलब्ध हैं। इन टीकों के लिए सरकार समय-समय पर टीकाकरण अभियान भी चलाती है, जिसका लाभ पशुपालक ले सकते हैं। |
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लेखक- दीपक गुप्ता