मुर्गियों की देसी नस्ल पालकर हो सकती है अच्छी कमाई
पोल्ट्री बिज़नेस में देसी नस्लों को भले ही ज़्यादा प्राथमिकता न मिलती हो, लेकिन ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकते हैं। जानें ऐसे।

पक-पक-पक-पकाक...जी हां, ये वही आवाज़ है जिसकी नकल उतारते हम सबका बचपन बीता है। लेकिन, क्या आपको पता है कि ये आवाज़ आपकी ज़िंदगी को एक मधुर धुन में बदल सकती है और तगड़ा मुनाफा भी दे सकती है? जानना चाहेंगे कैसे? तो चलिए, आज Knitter के इस ब्लॉग के ज़रिए आपके इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
आज हम आपको देसी मुर्गी पालन के बारे में जानकारियां देंगे। हम बताएंगे कि आप कैसे मुर्गियों की देसी नस्ल पालकर मोटा मुनाफा कमा सकते हैं? साथ ही ये भी समझाने का प्रयास करेंगे कि ग्रामीण भारत को इसे गंभीरता से क्यों लेना चाहिए? इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, ये बता देते हैं कि यहां आपको क्या-क्या जानकारियां मिलेंगी।
आप जानेंगे-
- देसी मुर्गी पालन क्या है?
- इसमें क्या स्कोप है?
- देसी नस्ल पालने के फायदे क्या हैं?
- प्रचलित नस्लें कौन सी हैं?
- लागत कितनी आएगी?
- मुनाफा कितना होगा?
- लोन और सब्सिडी का क्या प्रावधान है?
देसी मुर्गी पालन पर एक नज़र:
देश में मांस और अंडों की लगातार बढ़ती मांग के बीच मुर्गी पालन का व्यवसाय एक नया मुकाम हासिल कर चुका है। भले ही बीते कुछ वर्षों में इस क्षेत्र ने देसी नस्लों से दूरी बनाए रखी हो, मगर हाल के दिनों में मुर्गी पालन में देसी नस्लों पर फिर से विचार किया जा रहा है। यहां तक कि जानकार भी देसी नस्लों के पालन को एक बेहतर विकल्प बता रहे हैं।
आपको बता दें कि मुर्गियों की देसी नस्ल ब्रॉयलर से बिल्कुल अलग होती है। भले ही इनका विकास धीमी गति से होता है, मगर ब्रॉयलर के मुकाबले बाज़ार में इनकी कीमत दो से तीन गुना तक अधिक होती है। वहीं, इनमें प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी ज़्यादा होती है।
स्कोप:
- बाज़ार में देसी नस्लों की अच्छी मांग है
- मुनाफे के लिहाज़ से एक बेहतर विकल्प है
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल देने में मददगार है
- छोटे व सीमांत किसानों की अतिरिक्त आय का साधन भी है
देसी नस्ल पालने के फायदे:
- इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज़्यादा होती है
- मृत्यु दर भी न के बराबर होती है
- पोषण के लिहाज़ से बेहतर विकल्प है
- इन्हें पालने में ज़्यादा खर्च नहीं आता
- बाज़ार में ये अच्छी कीमत में बिकते हैं
कुछ प्रचलित देसी नस्लें:
असील कागर:
ये नस्ल राजस्थान, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। इसकी गर्दन लंबी होती है।
- वज़न (20 हफ्ते में)- करीब 1.4 किलो
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या- 98 से 100
- अंडे सेने की क्षमता- 86 प्रतिशत
असील पीला:
यह असील नस्ल की ही एक अन्य प्रजाति है।
- वज़न (20 हफ्ते में)- करीब 1.3 किलोग्राम
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या- 90 से 92
- अंडे सेने की क्षमता- 85 प्रतिशत
कड़कनाथ:
इसका नाता मध्य प्रदेश के झाबुआ ज़िले से है। कुछ विशिष्टताओं के चलते इस नस्ल को जीआई टैग भी मिल चुका है।
- वज़न (20 हफ्ते में)- करीब 1 किलो
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या- 100-105
- अंडे सेने की क्षमता- करीब 80 प्रतिशत
नेकेड नेक:
इस नस्ल का ताल्लुक केरल से है। इसकी गर्दन पर बाल या पंख आदि का हिस्सा नहीं होता है। इसलिए इसे नेकेड नेक कहा जाता है। इस नस्ल के अंडे अन्य भारतीय नस्लों की तुलना में काफी बड़े होते हैं।
- वज़न (20 हफ्ते में)- करीब 1.1 किलो
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या- 98 से 100
- अंडे सेने की क्षमता- 86 प्रतिशत
फ्रिजिल:
इस नस्ल का शरीर अंडाकार होता है। इसे तटीय क्षेत्रों में आसानी से देखा जा सकता है। यहां तक कि ये नस्ल उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी मौजूद है।
- वज़न (20 हफ्ते में)- करीब 1.1 किलो
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या- 110 से 120
- अंडे सेने की क्षमता- 82 प्रतिशत
झारसीम:
ये झारखंड की मूल नस्ल है। बहुत तेज़ी से बढ़ती है और कम आहार और पोषण में भी ज़िंदा रहती है।
- वज़न- 1.5 से 2 किलो
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या-165 से 170
- अंडे सेने की क्षमता- करीब 80 प्रतिशत
ग्राम प्रिया:
ये एक उन्नत देसी नस्ल है, जो मुर्गी पालन करने वालों के बीच लोकप्रिय है। इसे स्थानीय नस्लों की क्रॉस ब्रीडिंग के ज़रिए तैयार किया गया है।
- वज़न- औसतन 2 किलो
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या- 210 से 225
- जीवन क्षमता- 95 प्रतिशत
श्रीनिधि:
यह एक दोहरी उपयोगिता वाली उन्नत नस्ल है, जिसमें मांस और अंडों का बेहतर उत्पादन हो पाता है। मुनाफे की दृष्टि से भी ये एक बेहतर विकल्प है। यह झारखंड में काफी प्रचलित है।
- वज़न – 2.5 से 5 किलो
- सालाना प्राप्त होने वाले अंडों की संख्या- करीब 200 से 210
इसके अतिरिक्त वनराजा, स्वरनाथ, कामरूप, देवेन्द्र, कैरी श्यामा और मलय जैसी ढेरों देसी नस्लें हैं, जिन्हें पालकर अच्छा-खासा मुनाफा हासिल किया जा सकता है। हालांकि, नस्लों का चुनाव करने के दौरान स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है। आप चाहें, तो नज़दीकी पशु पालन या मुर्गी पालन विभाग से इस संबंध में अधिक जानकारी ले सकते हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल:
जानकारों की मानें, तो देसी नस्लें ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन सकती हैं। भले ही ये नस्लें अंडा उत्पादन में अन्यों की तुलना में थोड़ी पीछे हों, मगर सच्चाई ये है कि ये नस्लें अनियमित आहार और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से परे अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता रखती हैं। साथ ही कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को अतिरिक्त आय का एक साधन भी प्रदान करती हैं। सरल शब्दों में कहें, तो मुर्गे-मुर्गियों की देसी नस्लों को पालना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल प्रदान कर सकता है।
देसी नस्लें और बैकयार्ड मुर्गी पालन:
ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बैकयार्ड मुर्गी पालन एक बेहतरीन विकल्प है। इसमें लागत भी न के बराबर है और मुनाफा भी अच्छा है। इसके तहत घर के पीछे खाली पड़े आंगन में मुर्गियां पाली जाती हैं। अच्छी बात ये है कि आपको इनकी ज़्यादा देख-रेख भी नहीं करनी पड़ती। और तो और सरकार भी बैकयार्ड मुर्गी पालन शुरू करने में आपकी मदद करती है। आप चाहें, तो स्थानीय मुर्गी पालन विभाग से किसी उन्नत देसी नस्ल को हासिल कर उसे पाल सकते हैं।
लागत:
देसी नस्लों को पालने में ज़्यादा खर्च नहीं आता, इसलिए लागत भी कम आती है। जानकारों के मुताबिक, महज़ 10 से 15 हज़ार रुपये की लागत के साथ देसी नस्लों को पाला जा सकता है। आप चाहें, तो महज़ 5 चूज़ों से भी इसकी शुरुआत कर सकते हैं, जिस पर संभवतः आपको 500 रुपये से भी कम खर्च करने होंगे।
मुनाफा:
चूंकि देसी नस्लों की अच्छी मांग है, बाज़ार में ये अच्छी कीमत पर बिकते हैं। ऐसे में आप आसानी से 40 प्रतिशत या उससे अधिक का मुनाफा कमा सकते हैं। यदि आपके आस-पास मांग अच्छी है, तो दोगुने से भी ज़्यादा मुनाफा संभव है।
लोन व सब्सिडी:
नेशनल लाइवस्टॉक मिशन और नाबार्ड के पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF) के तहत आप लोन और सब्सिडी का लाभ ले सकते हैं। सामान्य वर्ग को 25 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलती है। वहीं, बीपीएल और SC/ST और उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों के लिए करीब 33 प्रतिशत तक की सब्सिडी का प्रावधान है। इसके अलावा अलग-अलग राज्य बैकयार्ड मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक मदद भी देते हैं।
हमें उम्मीद है कि आपको Knitter का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। Knitter पर आपको बिज़नेस के अलावा कृषि एवं मशीनीकरण, एजुकेशन और करियर, सरकारी योजनाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे। आप इनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
लेखक- कुंदन भूत