मधुमक्खी पालन से जुड़ी हर जानकारी यहां जानें
मधुमक्खी पालन से केवल शहद ही नहीं मोम और गोंद भी बनता है। knitter के इस ब्लॉग में हम मधुमक्खी पालन से जुड़ी जानकारी देंगे।

भारत में मधुमक्खी पालन का इतिहास बहुत पुराना है। इतिहास के पन्नों को खंगाला जाए तो हमारे पूर्वजों का पहला मीठा खाद्य शहद ही मिलेगा। शहद (HONEY) को देवताओं का उपहार माना जाता है। मिट्टी के घड़ों में, लकड़ी के संदूकों में, पेड़ के तनों में या दीवार की दरारों में हम आज भी मधुमक्खियों के छत्तों को देखते हैं। अब वैज्ञानिक तरीकों से मधुमक्खी पालन किया जा रहा है, जो कृषि के क्षेत्र में किसानों की आय भी बढ़ा रहा है।
मधुमक्खी पालन (bee farming) एक ऐसा व्यवसाय है, जो कम लागत के साथ शुरू किया जा सकता है। Knitter के इस ब्लॉग में आपको मधुमक्खी पालन से जुड़ी हर जानकारी देंगे। तो चलिए अपने इस सफर को शुरू करते हैं जानकारियों के साथ।
मधुमक्खी पालन को समझें
मधुमक्खी पालन में हमें केवल शहद नहीं मिलता बल्कि मोम और गोंद भी इसी प्रक्रिया से हमें प्राप्त होते हैं। फलों से रस निकालकर मधुमक्खी अपने छत्ते में शहद बनाती है। ठीक उसी तरह मधुमक्खियों को पालकर शहद का उत्पादन किया जाता है।
मधुमक्खियों के जरिए फूलों में परपरागण होता है, जिससे फसल की उपज भी एक चौथाई बढ़ती है। मधुमक्खी पालन ने कम लागत वाला कुटीर उद्योग का दर्जा ले लिया है। ग्रामीण भूमिहीन बेरोजगार किसानों के लिए आमदनी का एक अच्छा साधन बन गया है।
मधुमक्खियों को पालने की पूरी प्रक्रिया को समझें, उससे पहले आप उन मधुमक्खियों के बारे में भी जान लीजिए, जिन्हें काम के हिसाब से श्रेणियोंं में बांटा गया है।
जैसे-
रानी मधुमक्खी- ये अंडे देती है, जिसकी रखवाली बाकी मधुमक्खियां करती हैं।
श्रमिक मधुमक्खियां- छत्ते में इनकी संख्या सबसे ज्यादा होती है। ये डंक भी मारती हैं। शहद की ज़्यादा मात्रा भी इनकी संख्या पर निर्भर करती है।
नर मधुमक्खी- गर्भाधान ही इनका एक मात्र काम है। ये छत्तों का शहद भी खाते हैं। यह श्रमिक मधुमक्खी से कुछ बड़ा और रानी मधुमक्खी से छोटा होता है।
मधुमक्खियों की प्रजातियां
भारत में मुख्यतः मधुमक्खियों की चार प्रजातियां (bee species information) पाई जाती है।
एपिस डोरसेटा (भंवर मधुमक्खी)- यह आकार में बड़ी और स्वभाव से गुस्सैल होती है। भंवर मधुमक्खी औसतन 20 से 25 किलो शहद सालाना देती है।
एपिस फलोरिया (उरम्बी मधुमक्खी)- आकार में सबसे छोटी होती है। यह अक्सर छत के कोनों में छत्ता बनाती है। इस प्रजाति की मधुमक्खी साल में 2 किलो तक शहद देती है।
एपिस सेराना इण्डिका (भारतीय मधुमक्खी)- मधुमक्खियों की यह प्रजाति पहाड़ी और मैदानी क्षेत्र में पाई जाती है। यह खंडहर स्थान जैसे पेड़ों और गुफाओं में छत्ता बनाती है। यह साल में 6 किलो तक शहद देती है।
एपिस मेलिफेरा (इटालियन मधुमक्खी)- इस प्रजाति की रानी मधुमक्खी में अण्डे देने की क्षमता बहुत अधिक होती है। यह सबसे ज़्यादा शहद भी देती है। साल में 60 से 80 किलो तक शहद प्राप्त होता है।
ऐसे करें मधुमक्खी पालन
मधुमक्खियों को उनकी प्रजाति के हिसाब से पालकर शहद, मोम और गोंद मिलता है। शहद एवं मोम के अलावा अन्य पदार्थ प्रोपोलिस, रायल जेली, डंक-विष भी मिलते हैं। मधुमक्खी पालन 12 महीने किया जा सकता है। लेकिन, जनवरी से मार्च और नवंबर से फरवरी का चक्र इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
शहद बनने की प्रक्रिया
मधुमक्खियों को पालने के लिए लकड़ी के बने बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता है। जिसे आधुनिक मधुमक्षिकागृह (Beehive) भी कहा जाता है। शहद को अलग छत्तों मे भरा जाता है, जिसे बिना काटे ही मशीन से निकाला जाता है। शहद निकालने के बाद खाली हुए छत्तों को वापस इन लकड़ी के बॉक्स में रख दिया जाता है, जिससे मधुमक्खियां फिर से इनमें बैठे और शहद बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाए।
मोम बनने की प्रक्रिया
मोम बनाने के लिए मधुमक्खियां पहले शहद खाती हैं, फिर उससे गर्मी पैदा कर अपनी ग्रंथियों द्वारा छोटे-छोटे मोम के टुकड़े बाहर निकालती हैं। मोम को निकालने के लिए छत्तों से इसे अलग करना होता है, जिसके लिए मोम को उबलते पानी में डालकर पिघलाया जाता है। उबलते पानी में मोम छत्तों से अलग होकर तैरने लगता है। जिसे साफ करने के लिए 2 से 3 बार पानी में पिघलाकर ठंडा करना पड़ता है।
गोंद बनने की प्रक्रिया
जब मधुमक्खी किसी पेड़ पर जाती है तो वहां से वाटर पार्टिकल को अपने स्लाइवा में लेकर हाइव के अंदर आती है, एयर ब्लॉक करने के लिए। गोंद को निकालने के लिए पर्पोलिस शीट का इस्तेमाल किया जाता है।
रॉयल जेली का उत्पादन
रॉयल जेली का उत्पादन मधुमक्खी के छत्तों में से किया जाता है। यह सबसे उत्तम पौष्टिक पदार्थ माना जाता है। यह मानव शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है।
लागत और सावधानी
मधुमक्खी पालन में जिन बक्सों का इस्तेमाल होता है, अगर उसके हिसाब से अंदाज़ा लगाएं तो 50 बक्सों के लिए करीब 2 लाख रुपये खर्च करने होंगे। मधुमक्खियों को पालते वक्त आसपास की सफाई का बेहद ध्यान रखें। बड़े चींटे, मोमभझी कीड़े, छिपकली, चूहे, गिरगिट तथा भालू मधुमक्खियों के दुश्मन हैं, इनसे बचने के भी साधन होने चाहिए।
मुनाफा
बात करें मुनाफे की तो, मधुमक्खी पालन कमाई बढ़ाने का एक बेहतर विकल्प है। इसके एक बॉक्स में करीब 40 किलो शहद निकलता है, यानी 10 बॉक्स में करीब 400 किलो शहद। 350 रुपये प्रति किलो से भी हिसाब लगाएं तो करीब एक लाख 40 हजार रुपये आपके पास आएंगे, जिसमें करीब 1 लाख रु. का मुनाफा होगा और 40 हजार रु. की लागत, तो है न ये फायदे का सौदा।
चुनौतियां
- जलवायु परिवर्तन मधुमक्खी पालन के समक्ष आने वाली एक अहम समस्या है, जिसके कारण मधुमक्खी की मृत्यु दर भी बढ़ जाती है।
- जलवायु परिवर्तन होते ही महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में मधुमक्खी खाने वाली जीव पहुंच जाते है, जिस कारण यह भी मधुमक्खी की मृत्यु का कारण बनता है।
हम आशा करते हैं कि मधुमक्खी पालन पर हमारा यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा। यदि आप हमारे अन्य ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं, तो आप Knitter पर जाकर उन्हें पढ़ सकते हैं।
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लेखक- नितिन गुप्ता